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हिन्दुस्थानी शिष्टाचार


पत्रों में धड़ाधड़ उर्दू की गजलें छपवा रहे हैं। कुछ लेखक ऐसे भी हैं जो शेक्सपियर ओर मिलटन की दुहाई दिये बिना और हिन्दी अनुवाद के साथ उनके विचार अंगरेजी मे उदधृत किये बिना अपने को धन्य नहीं मान सकते । किसी किसी लेख म उर्दू शब्दों की इतनी प्रधानता रहती है कि यह लेख लेखक की उर्दू विक्षता प्रकट करने के सिवा प्राय ओर कोई बात प्रकट नहीं करता । कई-एक लेखक ऐसे विचित्र हैं कि उनका एक वाक्य एक पृष्ठ में और एक पैरा तीन पृष्ठों में पूरा होता है । यदि ऐसे लेखको और सम्पादको को केवल हिन्दी जाननेवाले पाठक अनुभव हीन और अयोग्य समझ तो कोई आश्चर्य की बात नहीं।

(१३) सार्वजनिक

जिन स्थानो पर सर्व साधारण का विस्तार होता है, उन पर दूसरो का विस्तार रोकना और केवल अपना ही विस्तार करना अनुचित है। ग्राम सड़क के बीच में अथवा उस पर चलने वाले लोगो के मार्ग में सड़ा होना अशिष्टता है। लोग बहुधा सड़को पर अपनी दूकाने बढ़ा लेते हैं अथवा चबूतरे बनाकर उनपर अपना रही विस्तार करते हैं। ये कार्य भी अनुचित हैं। कही कही लोग आवागमन के मार्ग मे गाड़ियां खड़ी कर देते हैं अथवा अपने सामान या माल का ढेर लगाते हैं । कोई-कोई लोग तो अपने उत्सवो के कारण सड़को पर पूरा अधिकार करके कुछ समय के लिए लोगो का आवागमन ही बंद कर देते हैं । यद्यपि ये सब अपराध कानून से दण्डनीय है तथापि इनमे शिष्टाचार का भी उल्नधन होता है।

सडको पर बहुधा ऐसी चीजें,न फेकना चाहिये जो घृणित हो अथवा जिनसे दूसरो के स्वास्थ्य में विघ्न पड़ने का भय हो । घरो के निकट इस प्रकार के विस्तार भी न किये जा जो स्वच्छता की दृष्टि से विषिद्ध हैं। सड़को की और पाखानो के दरवाजे न खोले जायें