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हिन्दुस्तानी शिष्टाचार


उस जाति की पहचान होती है। हम पोशाक देखकर ही यह जान सकते हैं कि अमुक मनुष्य मारवाड़ी है, अमुक मनुष्य सिन्धी है और अमुक मनुष्य गुजराती है। इसी प्रकार बालों की रचना से भी हम अनुमान कर लेते हैं कि यह मनुष्य मद्रासी है और वह पंजाबी है। पारसी लोगों को हम उनके कोट, पतलून और टोपी से तुरन्त पहचान सकते हैं। ऐसी अवस्था में जो लोग दूसरो की चाल-ढाल का अनुकरण करते हैं, वे मानो बगुला बनकर हंसो की समाज में मिलते हैं और अपना अपमान कराते हैं।

विदेशी वालो का अनुकरण करने वाले हिन्दुस्थानी सज्जनों को कम से कम इस बात पर अवश्य ध्यान रखना चाहिये कि वे अपनी चोटी न कटाया करें। आज कल एक हिन्दुस्थानी जाति ही ऐसी अभागिनी है कि वह बहुतसी बातो में मुसलमानो से मिलती- जुलती है । ऐसी अवस्था में यदि हिन्दुस्थानी लोग चोटी न रखेंगे तो उनके मुसलमान समझे जाने में कोई सन्देह न रह जायगा। जातीय झगड़ो में उनके सजातीय ही उन्हें शिखा-नष्ट समझकर अपने कोप का पात्र बना लेंगे और उनकी दशा चमगीदड़ की सी हो जायगी। आज कल छोटे-छोटे बाल रखना सर्वस सभ्य समझा जाता है, इसलिये जो लोग बडे बिल रखते हैं उन्हें लोग कुछ असभ्य अथवा शोकीन समझते हैं। ऐसी अवस्था में भी बालों के सम्बन्ध में दूसरी जाति का अनुकरण करना अशिष्ट माना जाता है।

अलग-अलग जातियों में भोजन करने की रीति अलग-अलग है । जो आदमी किसी दूसरी जाति के यहाँ भोजन करने जाता है उसके बैठने और भोजन करने की रीति से तुरंत पता लग जाता है कि यह मनुष्य किस जाति का है। यद्यपि स्वादिष्ट भोजन बनाने की रीति किसी दूसरी जाति से सीखना और उसके अनुसार भोजन बनाना अनुचित नहीं है, तथापि जातीय जेवनारो में इस