पृष्ठ:हिन्दुस्थानी शिष्टाचार.djvu/४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( २ )

"कम तरीन" कहना ओर पिता को "धन्यवाद" देना नहीं बताया गया है।

शिष्टाचार के जितने स्थान और अवसर हैं उन सबका ऐसा पूर्ण और निश्चित विवेचन करना कि कोई बात छूटने न पावे, प्रथम प्रयास में—विशेष कर हमारे लिए—कठिन है। तथापि जो कुछ अगले पृष्ठों में लिखा गया है उससे साधारणतया व्यवहारी काम-काज सन्तोष पूर्वक चल सकता है और शिष्टाचार की महत्ता तथा आवश्यकता सूचित हो सकती है।

इस संग्रह में कहीं-कहीं पुनरुक्ति दोष आगया है जिसका कारण यह है कि किसी एक व्यवहार का काम अनेक अवसरो पर पड़ता है और उस प्रसंग पर उसका उल्लेख करना आवश्यक होता है। आशा है, हिन्दुस्थानी समाज की वर्तमान परम्पर-उदासीन परिस्थिति में इस पुस्तक से लोगो में कुछ मेल-जोल बढ़ेगा।

कामताप्रसाद गुरु।


_______