पृष्ठ:हिन्दुस्थानी शिष्टाचार.djvu/४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३४
हिन्दुस्थानी शिष्टाचार


शिष्टता पूर्वक कोई उचित दिखनेवाली कठिनाई का कारण बताकर निमंत्रण अस्वीकृत कर दे, पर निमंत्रण स्वीकार कर उसे अपने वचन का पालन अवश्य करना चाहिए । कम से कम उसे निमंत्रक के घर तक तो जाना ही चाहिए और यदि आवश्यक हो तो भोजन न करने के कारण अपनी कोई एक कठिनाई बताकर गृह-स्वामी में क्षमा मांँग लेना चाहिए । निमंत्रण स्वीकार कर अपने बदले में लड़को को अथवा किसी निकट सम्बन्धी को भेजना बहुधा अनुचित नहीं माना जाता। जाति-सम्बन्धी भोजो में जिसको निमंत्रण दिया जाता है उसके यहाँ यदि कोई ऐसा आदमी ठहरा हो जिससे निमंत्रणकारी का परिचय अथवा सम्बन्ध है तो उसको भी निमंत्रण दिया जाय ।

भोजन के लिए कम से कम दो बार चुलावा भेजना चाहिए— एक बार सूचना के रूप में और दूसरी बार जेवनार आरम्भ होने के पूर्व । यदि लिखा हुआ निमंत्रण दिया गया है तो दूसरा बुलावा भेजना आवश्यक नहीं है, क्योकि निमंत्रण-पत्र में बहुधा समय और स्थान दिया रहता है।

समय का पालन खानेवाले ओर खिलानेवाले दोनो को करना चाहिए। ऐसा न हो कि नेवतेवालो को भोजन के लिए कई घटों तक ठहरना पड़े अथवा किसी एक व्यक्ति के आगमन की प्रतीक्षा में समय पर पगत ही न बैठ सके। दोनो ओर को अधिक से अधिक एक घंटे का समय दिया जा सकता, है, पर जिन्हें कोई और आवश्यक कार्य करना है उनके भोजन का प्रबन्ध समय पर होना चाहिए । साधारण स्थिति के लोगों के प्रति पाहुनो को कुछ अधिक उदारता दिसानी चाहिए।

भोजन में बैठक का नाम निश्चित करने में बड़ी सावधानी की आवश्यकता है। यदि किसी विशेष व्यक्ति के उपलक्ष्य में भोज दिया गया है, जैसे बरात में दूल्हे के अथवा विदाई में किसी पाहुने