पृष्ठ:हिन्दुस्थानी शिष्टाचार.djvu/४५

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चौथा अध्याय

विवाहो में अश्लील गीतो और चालो का प्रचार रोकने की बढ़ी आवश्यकता है, क्योकि इन बातों से केवल झगड़े ही नहीं बढ़ते, किन्तु जाति के लोगो पर, विशेषकर नई वयवालो पर, बड़ा बुरा प्रभाव पड़ता है। साथ ही अन्यान्य जातियों के आगे जिनमें ये कुरीतियांँ नहीं हैं अथवा जिन्होंने अपनी शिक्षा से इनका बहिष्कार कर दिया इन बातों की समर्थक जाति हीन ओर घृणित समझी जाती है। वेश्याओं को नृत्य कराना भी अब अशिष्ट समझा जाने लगा है।

जो लोग उत्सवो में भाग लेते हैं उनकी विदा आदर पूर्वक की जावे । पाहुने की योग्यता ओर जाति-सम्बन्ध के अनुसार उसे भेंट दी जावे ओर दो चार चुने शब्दों में उससे त्रुटियों के लिए क्षमा मांगी जावे। पाहुनो का साथ कुछ दूर तक जाना भी आवश्यक है। सार यह है कि पाहुनो का यथोचित आदर करने में कोई बात उठा न रक्खी जावे।

ऊपर जो बातें विवाहोत्सव के प्रसंग से कही गई है वही थोड़े हेरफेर से अन्यान्य घरु उत्सवो के सम्बन्ध म भी कही जा सकती हैं। इन सब अवसरों पर उसी उपयोगी नियम का पालन करना चाहिए जिसका उल्लेख पुस्तक के आरम्भ में किया गया है, अर्थात मनुष्य दूसरे के साथ वैसा ही व्यवहार करे जैसा वह दूसरे से अपने साथ कराना चाहता है।

जिन घर-सम्बन्धी उत्सवों में केवल स्त्रियाँ ही भाग लेती हैं, जैसे सुहागिलो आदि में, उनमे शिष्टाचार का उत्तरदायित्व स्त्रियों पर ही है। स्त्रियों में आत्म प्रशंसा की प्रवृत्ति बहुधा पुरुषों की अपेक्षा कुछ अधिक रहती है, इसलिए उन्हें इस प्रवृत्ति को कम करना चाहिए । सदा अपने ही विषय की अथवा अपनी वस्तुओं (गहनो, वस्रों आदि) की चर्चा करना शिष्टता के विरुद्ध है । पुरुषों के समान