पृष्ठ:हिन्दुस्थानी शिष्टाचार.djvu/४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४१
चौथा अध्याय


दशहरे के उत्सव से सम्बन्ध रखने वाले शिष्टाचार की कुछ बातें लिखते हैं।

दशहरे के दिन, राम के रावण को जीतने के उपलक्ष्य में, हिंदू लोग आनन्द मनाते हैं । इस दिन हिन्दुस्थानी लोग अपने मित्रों, व्यवहारियों तथा जतिवालो के यहांँ दशहरे का पान खाने के लिए जाते हैं और भेंट में उन्हे ‘सोना' ( शमी पत्र ) देते हैं । इस अव- सर पर लोग बहुधा उन लोगो के यहाँ भी जाते हैं जिनसे वर्ष के भीतर कभी लड़ाई झगड़ा हो गया हो—अर्थात् इस महोत्सव के उपलक्ष्य में लोग आपसी द्वेष भूल जाते हैं। ऐसा करना सामाजिक उत्कर्ष के लिए बहुत आवश्यक है । दशहरे की भेंट के समय छोटे बड़ो का चरण-स्पर्श अथवा उनको प्रणाम करते हैं । गृह-स्वामी आगत सज्जनों का पान आदि से उचित आदर करते हैं । यदि समयाभाव या ओर किसी अड़चन से कोई किसी के यहाँ दशहरे के दिन नहीं जा सकता तो वह दूसरे दिन जाता है । कोई कोई बडे़ लोग दूसरो के यहाँ नहीं जाते, पर उनका यह आचरण अनु- करणीय नहीं है और दूसरे लोग भी असंतोष के कारण उनके यहाँ जाना बंद कर देते हैं।

दशहरे के दिन संध्या के समय लोग अच्छे कपड़े पहिनकर नीलकंठ के दर्शनो के लिए बस्ती से बाहर जाते हैं ओर वहीं से शमी पत्र लाते हैं। कई लोग नगर के बाहर कभी कभी ऐसे लोगो से अपना व्यवहार निवटा लेते हैं जिनसे साधारण परिचय रहता है और जिनके यहांँ उन्हें जाने का सुभीता नहीं होता।

यद्यपि यह महोत्सव सामाजिक, धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी भारतवर्ष और हिन्दू जाति के लिए बड़े महत्व का है तथापि रजवाड़ा को छोड़ अन्य स्थानों में इसका पालन बहुधा उदासीनता के साथ होता है। यदि हम लोग चाहें तो इस अवसर