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हिन्दुस्थानी शिष्टाचार


करें। ऐसा न हो कि स्त्रियों की आवश्यकताओं को रोककर पुरुष बल-पूर्वक अपने कार्य साधें । अबलाओं को संकट में पड़े हुए अथवा पड़ते हुए देखकर पुरुषों को तन-मन-धन से उनकी रक्षा करना चाहिए। यदि उनके सतीत्व की रक्षा करने में पुरुषों को अपने प्राण भी देना पड़े तो कोई बड़ी बात नहीं है । जो मनुष्य इतने ऊँचे विचारों से प्रेरित होगा यह कम से कम ऐसा कभी नहीं कर सकेगा कि पानी लेने के लिए स्त्रियों को खड़ी रखकर स्वंय कुएँ की पाट पर बैठकर आनन्द से घंटों स्नान करे और कपड़े धोवे । जो व्यवहार स्त्रियों के प्रति कहा गया है वही बूढो, बालकों ओर अपाहिजो के साथ किया जाय।

विदेश में पहुंँचकर वहां के लोगो से बातचीत करने में उनकी भाषा, भेष, भोजन और रीति की तीन आलोचना करना उचित नहीं, चाहे ये सब बातें किसी को अनौखी अथवा अनुचित ,क्यो न मालूम पड़े। साथ ही यह भी अनुचित है कि मनुष्य अपने देश की इन सब बातो की आवश्यकता से अधिक प्रशंसा करे, चाहे उसका कहना सब प्रकार से भले ही सत्य हो । दूसरे देश के हीन लोगो से भी सभ्यता और सहानुभूति का व्यवहार होना चाहिए।

( ९ ) श्मशान-यात्रा में

हिन्दुस्थानी लोगो में छुआछूत और जाति-भेद का विचार होने के कारण लोग बहुधा अन्य जाति-वालों की श्मशान-यात्रा में सम्मिलित नहीं होते, यद्यपि यह प्रथा दूषित है। हम लोगो में यह भी कुप्रथा है कि बहुधा चुने हुए मित्रों और नातेदारो को ही मृत्यु की सूचना दी जाती है, इसलिये जिन लोगो के पास ऐसी सूचना नहीं पहुँचती, ये अन्य स्थान से समाचार पा लेने पर भी कभी- कभी संकोच-वश अपने साथियों की अरथी के साथ नहीं जाते। ऐसी अवस्था में भी जब-तक कोई विशेष कारण न हो तब तक