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हिन्दुस्थानी शिष्टाचार


यह समय ताश खेलकर बिताया था, पर ऐसा करना परम निन्दनीय है। किसी किसी शिक्षित जाति मे यह चाल है कि शव को चिता पर रखने के पूर्व उपस्थित सज्जनो में से कोई एक महाशय मृत व्यक्ति के गुण-कथन पर व्याख्यान देते हैं और उसके कुटुम्बियों और उत्तराधिकारियो के साथ अपनी सहानुभूति प्रकट करते हैं। प्रतिष्टित व्यक्तियों के सम्बन्ध से तो यह व्याख्यान बहुत ही आवश्यक समझा जाता है, पर इस प्रथा से शिष्टाचार का इतना घना सम्बन्ध है कि मेरी समझ में इसका प्रचार सर्वत्र होना चाहिए । सारांश यह है कि हम मृत प्राणी के शरीर और आत्मा का जितना ही अधिक आदर करेगे उतनी ही हमारी उदारता सिद्ध होगी।

श्मशान से लौटकर बिना स्नान किये मृतक के घर अथवा अपने घर नहीं आना चाहिए । श्मशान से लौटते समय मार्ग के किसी जलाशय में स्नान करके मृतक के घर को ओर फिर अपने घर को आना उचित है। मार्ग में उसी गंभीरता का अवलम्ब करना चाहिए जिसका उल्लेख पहिले हो चुका है। यदि हो सके तो मृतक के सम्बन्धियो से सहानुभूति प्रकट करने के लिए उनके यहाँ दूसरे दिन फिर जाना उचित है।

जो लोग किसी की लकड़ी में जाते हैं वे बहुधा तेरहवीं के दिन भोजन के लिए निमंत्रित किये जाते हैं। इन लोगो को यदि कोई सामाजिक अथवा धार्मिक बन्धन न हो तो उस भोज में अवश्य ही सम्मिलित होना चाहिए जिससे मृतक के सम्बन्धियो को परम अनुग्रह के ऋण से कुछ अंश में मुक्त हो जाने का अवसर मिल जावे।

( १० )जातीय व्यवहार में

जाति-वालो और सम्बन्धयों के साथ शिष्टाचार का पूरा पालन न करने से बहुधा आपस में वैमनस्य हो जाता है,