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हिन्दुस्थानी शिष्टाचार


यदि कोई जातिवाला अथवा सम्बन्धी किसी कठिन रोग से ग्रस्त हो जाय तो उसकी खबर पूछने और चिकित्सा में यथा-शक्ति-सहायता देने के लिए दो-चार वार जाना आवश्यक है। ये बातें केवल शिष्टाचार की हैं, इसलिये जो लोग किसी दुखित व्यक्ति के साथ अधिक भलाई करना चाहते, उनका यह काम पुण्य,परोपकार और नीति का होगा।

( ११ ) पंचायत में

पंचायत में प्रत्येक दल के मुखिया को अपना मत प्रकट करने के लिए पूरा अवसर दिया जावे । जब-तक कोई आदमी अपने पक्ष की युक्तियाँ उपस्थित करता रहे तब तक दूसरे पक्षवाले को उन्हें काटने का अधिकार न देना चाहिए । एक पक्ष का कथन समाप्त होने पर विरुद्ध मत वाले को बोलने का अधिकार दिया जावे । सिरपंच का यह कर्तव्य है कि वह प्रत्येक पक्ष के भाषण के लिए उचित और उपयुक्त समय देवे । पंचायतों में बहुधा एक ही समय कई लोग बोलते हैं और कभी कभी तो उनमे दस-दस पाँच पाँच आदमी मिलकर और अपनी अलग-अलग टोलियाँ बनाकर आपस में वाद-विवाद करते रहते हैं। इस प्रथा से समय और विषय का व्यर्थ ही नाश होता है।

पंचायत में जो प्रार्थी आते हैं उनके साथ धन, पदवी आदि के कारण पक्षपात न किया जावे । पंचायत के अध्यक्ष को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वाद विवाद में कोई व्यक्तिगत आक्षेप न आने पावे और न विवादियो का आपसी झगड़ा बढ़ने पावे । अनावश्यक बातें करने-वाले व्यक्ति की बातचीत कुछ कम कर दी जावे । स्त्री प्रार्थियो से सब के सामने इस प्रकार के कोई प्रश्न न किये जावें जिनका उत्तर देने में उन्हें संकोच होवे । जहाँ तक हो