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चौथा अध्याय


नागलिग लड़कों को गबाही पर किसी झगड़े का निपटारा न किया जाये।

पंचायत का कार्य आवश्यकता से अधिक बढ़ाया जावे और रात-रात भर बैठकर पंचायत न की जाये। सिरपंच को निष्पक्ष रहना चाहिए और अपने उत्तरदायित्व का पूरा विचार करके अपना अंतिम निर्णय सुनाना चाहिए । जो अध्यक्ष कान का कच्चा हो पर किसी बात का स्यवं निर्णय करने की शक्तित्व रखता हो उमे समा का प्रधान न बनना चाहिए । केवल प्रतिष्ठा पाने के लोभ में पड़कर उसे दूसरों का हानि पहुँचाना उचित नहीं।

झुठा निर्णय करना अथवा किसी दल के प्रति अत्याचार करना केवल सदाचार ही के विरुद्ध नहीं, किन्तु शिष्टाचार के भी विरुद्ध है। जो मनुष्य प्रमुख, चतुर और प्रभावशाली समझा जाता हो उसके लिए यह निन्दा की बात है कि वह प्रगट रूप से असङ्गत बातें करे और अपने पक्ष का समर्थन करने में दूसरे पक्ष की बातों का कुछ भी विचार न करे । प्रपंची पंचो के विषय में किसी कवि ने ठीक कहा है कि “नर्क परैं तिनके पुरखा, जे प्रपंच करें अरु पंच कहा" पंचायत के सभासदों को इस उपालम्भ से सदैव बचना चाहिए।

पंचायत में जो लोग बुलाए जाँय उनके मत पर ध्यान देना और उस पर विचार करना बहुत आवश्यक है । ऐसा न होना चाहिए कि जो मनुष्य पंचायत में बुलाया जावे उससे कोई सम्मति न ली जाय । पुराने विचार वालों को नये विचार वालों के मत को घृणा की दृष्टि से न देखना चाहिए और न नये विचार वालों को पुराने लोगों की प्रत्येक बात का खण्डन करना चाहिये । यदि कोई छोटी उमर-वाला आदमी कोई उचित प्रस्ताव करे अथवा न्याय पूर्ण सम्मति देवे तो उसका भी आदर करना उचित और आवश्यक है।