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पाँचवाँ अध्याय


का निश्चय न हो सके तो ‘श्रीयुत' शब्द का ही उपयोग किया जावे । नाम के साथ ‘जी' शब्द लगा देने से भी बहुधा आदर प्रकट हो जाता है। प्रतिष्ठित लोगो के साथ “श्रीमान्" जोड़ना और साधारण व्यकि के नाम में “श्रीयुत" लगाना चाहिए । स्त्रियों के नाम के पूर्व “श्रीमती" शब्द की ओर पीछे “देवी" की योजना की जावे । स्त्री का आस्पद पति के प्रास्पद के अनुरूप होता है।

पत्र किसी का भी हो, जब तक विशेष कारण न हो, उसका उत्तर देना आवश्यक है, क्योकि लोग बहुधा उसी को पत्र लिखते हैं जिससे उन्हे कुछ आशा होती है और कभी-कभी पत्र ऐसे लोगो के पास भी लिखने का अवसर आ पड़ता है जिनसे पहिले कभी पत्र-व्यवहार नहीं हुआ। ऐसी अवस्था में पत्र का उत्तर न देने का प्रश्न भली भाति विचार लेना चाहिये । यदि कोई किसी के पत्र का उत्तर नहीं देता है तो पत्र लिखने वाला उसे अपना अपमान समझता है और उत्तर न देने-वाले की ओर बहुधा बुरी धारणा कर लेता है । यदि पन-व्यवहार बहुत दिनो से चल रहा हो अथवा समय-समय पर होता रहा हो तो एक-आध पत्र का उत्तर न देने से विशेष हानि नही । पत्र मिलने के दूसरे या तीसरे दिन उसका उत्तर भेज देना आवश्यक है, क्योकि लोग अपना पत्र भेजने के एक सप्ताह के भीतर ही उसका उत्तर पाने की आशा करते हैं। यदि दो-चार दिन की देरी हो जावे तो वह क्षमा के योग्य है, परन्तु पखवारो या महीनों मे उत्तर देना असभ्यता है । आवश्यक पत्रों का उत्तर बिना विलम्ब के भेजना चाहिये।

आजकल शिक्षा के प्रभाव से पत्रों का पता बहुधा अँगरेजी ढंँग से लिखा जाता है। इस रीति में यह लाभ है कि चिट्ठी पाने- वाले का पता लगाने में चिट्ठी रखा को विशेष कठिनाई नहीं पड़ती। पुराने ढंँग का पता एक लम्बे वाक्य के रूप में रहता है जिसमें से