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हिन्दुस्थानी शिष्टाचार


जावे । भेंट के लिए आये हुए सज्जन से उसकी जाति और पदके अनुसार ‘प्रणाम', ‘नमस्कार', ‘राम-राम' अथवा ‘वदगी' कहकर उसका अभिवादन करना चाहिये । परिचित लोगो को इस बात के लिए न ठहरना चाहिये कि जब दूसरा अभिवादन करेगा तब हम उसका उत्तर देंगे। भेंट होने पर एक दुमरे का मुँह देखते रहना और कुछ न कहना बड़ी असभ्यता है । इसलिए मुख्य प्रयोजन अथवा और किसी उपयुक्त विषय पर चर्चा दे देनी चाहिए । यदि दिन में एक से अधिक बार भेंट हो तो प्रत्येक बार मिलने पर भी अभिवादन करने में कोई हानि नहीं है। जहाँ तक हो अभिवादन के पश्चात् थोड़ी-बहुत-चातचीत अवश्य कर ली जावे । यदि ओर कुछ न हो तो केवल कुशल-प्रश्न से ही काम चल सकता है।

किसी के यहाँ जाकर उसके कागज-पत्र, पुस्तकें अथवा दूसरे पदार्थ उठाना धरना अथवा उन्हें बड़े ध्यान से देखना अनुचित है। भेंट करने-वाले को उसी कोठे में बैठना चाहिए जो बैठक के लिए नियत हो और उस स्थान में तभी प्रवेश करना चाहिए जब गृह-स्वामी अथवा कोई अन्य पुरुष वहाँ उपस्थित हो । पुरुषों की अनुपस्थिति में किसी के यहा जाना संदेह की दृष्टि से देखा जाता है, इसलिये सभ्य लोगो को इस दोष से बचना चाहिये । जिन लोगो में पर्दे का विशेष प्रचार नहीं है उनके पास अनुमति मिलने पर स्त्रियों के उप- स्थित रहते हुए भी जा सकते हैं । यद्यपि पश्चिमीय देशो में दरवाजा बंद रहने पर बाहर से पुकारने के लिए साँकल खटखटाना अथवा किवाड़ भड़कना अनुचित नही समझा जाता, तथापि हमारे देश में इन कार्यो को अनुचित समझते हैं। किसी के दरवाजे जाकर जोर जोर से और लगातार पुकारना भी अनुचित है। दो एक बार पुकारने पर मिलने वाले को यह देखने के लिए ठहर जाना चाहिये