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हिन्दुस्थानी शिष्टाचार

भोजन के सम्बन्ध में भी परस्पर व्यवहार पालने की आवश्यकता है। जो व्यवहारी मनुष्य हमारे यहाँ भोजन करने को आवे उसके यहाँ हमे भी अवश्य जाना चाहिये । खान-पान के सम्बन्ध में जहाँ तक हो जाति-बंधन की रक्षा करते हुए इसी प्रकार का व्यवहार पालने की आवश्यकता है।

विवाह तथा दूसरे उत्सवों में जो लोग हमारी जैसी सहायता करते हैं उनके साथ हमे वैसा ही व्यवहार करने की आवश्यकता है। यदि कोई हमारे साथ बारात में जाता है तो हम भी समय निकालकर उसके साथ ऐसे अवसर पर जाना आवश्यक है।

गमी में प्रति व्यवहार पालने को अत्यन्त आवश्यकता है । यह ऐसा अवसर है कि इस समय किये गये उपकारो को लोग शीघ्र नहीं भूलते और सदैव इस बात के लिए तत्पर रहते हैं कि हम अपने उपकारी के संकट में सहायक होवें । जहाँ स्त्रियों में भी ऐसा व्यवहार प्रचलित है यहाँ स्त्रियों का भी कर्तव्य है कि वे अपनी सकट-ग्रस्त सखियो के यहाँ सहानुभूति प्रकट करने की जावें।

यदि हमें किसी उत्सव के अवसर पर दूसरे के यहांँ से पहिले- पहल निमन्त्रण आवे तो जब तक कोई विशेष कारण न हो तब तक हमें उस निमंत्रण का पालन करना चाहिये । इसी प्रकार यदि किसी नये स्थान से पहिले पहिल व्यवहार आये तो हमे उसे स्वीकार कर लेना चाहिये और स्मरण रखके उसे किसी उपयुक्त अवसर पर नियम पूर्वक लौटा देना चाहिये। ऐसे अनेक व्यवहार है जो किसी न किसी और से पहिले-पहिल आरम्भ किये जाते हैं और उनमें यह नहीं देखा जाता कि दूसरी ओर से यह व्यवहार कभी हुआ है या नहीं । गमी में इस प्रकार का एक पक्षीय विचार कभी न करना चाहिये, क्योकि यह पुण्य का कार्य है।