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पाँचवाँ अध्याय

कई लोग ऐसे भी होते हैं जो यह चाहते हैं कि दूसरे लोग हमारे यहांँ आवें पर हम उनके यहांँ न जाना पड़े। इस प्रकार के लोगो को सोचना चाहिये कि ये सब व्यवहार परस्पर हैं और बिना आदान प्रदान के थोड़े समय म बंद हो जाता है। कई लोगो को देखा है जो दुसरे के यहांँ उसके मरने पर भी नहीं जाते। आश्चर्य नहीं कि दूसरे लोग भी उनके साय ऐसा ही व्यवहार करें। किसी कवि ने कहा है,

झुके अपनेसे, उससे झुक जाइये ।
रुके अपनेसे, उससे रुक जाइये ॥

( ५ ) गुण-कथन में

संसारी काम-काज म अनेक अवसर एसे आते हैं कि जब हमें किसी के गुण को प्रकट करने की आवश्यकता होती है । नौकरी आदि के लिए जो सिफारिश की जाती है यह भी एक प्रकार का गुण-कथन है । यद्यपि लोगों की दृष्टि में और स्वभाव से भी बहुत कम ऐसे मनुष्य है जो सर्वथा निर्दोष हो तथापि गुण-कथन म हम जहाँ तक हो किसी व्यक्ति, के साधारण दोषों को छिपाकर उसके गुणों का ही परिचय देना चाहिए । हाँ, यदि दोषों को छिपाने से विशेष हानि होने की सम्भावना हो तो गुण-कथन म विशेष विस्तार न किया जाय।

यदि कभी किसी के दोष प्रकट करने का अवसर आ जाय तो वे निन्दा के रूप में अथवा घृणा के साथ कभी न प्रकट किय जावें‌। किसी के दोष प्रकट करने का अपगघ तभी क्षमा किया जा सकता है जब उससे सुनने-वाले को विशेष लाभ अथया चेतावनी प्राप्त हो सके । केवल इसी प्रेरणा के आधार पर द्वेष प्रकट करने-वाला मान हानि के अभियोग से रक्षा पा सकता है; क्योकि यह अपराध राज नियमों के अनुसार दण्डनीय है। शिष्टाचार की दृष्टि से और