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पाँचवाँ अध्याय


साधारण हो अथवा उसके यहाँ कुटुम्ब की अधिकता के कारण अथवा और किसी कारण से रसोई बनाने की कुछ अड़चन है तो उसके यहाँ चार। छ दिन से अधिक न ठहरना चाहिये । मित्र के यहाँ पहुँचने पर पाहुने को किसी न किसी तरह यह बात प्रगट कर देना चाहिये कि वह कितने दिन तक ठहरने वाला है, जिससे गृह स्वामी को उसके आदर सत्कार का प्रबंध करने के लिए अवसर मिल जावे । पाहुने को अपनी प्रस्तावित अवधि से अधिक न ठहरना चाहिये, जब तक इसके लिए गृह-स्वामी को ओर से विशेष आग्रह न हो । आतिथेय के यहाँ रहते हुए, पाहुने को भोजन के निश्चित समय पर उपस्थित रहना आवश्यक है जिसमें घर-वालों को उसके लिए अनावश्यक प्रतीक्षा न करनी पड़े । दूसरे के यहाँ जो भोजन बने उसे संतोष पूर्वक पाना चाहिये, चाहे वहाँ पाहुने की रुवि के अनुकूल न हो । यदि तुम्ह किसी वस्तु विशेष से अरुचि हो अथवा विकार होने का भावना हो तो रसोइ करने- वाले के पास तुम्हे इस बात की सूचना नम्रता पूर्वक पहुँचा देना चाहिये । इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिये कि भोजन परिमाण से अधिक न पाया जावे और न कम भी किया जावे।

जिसके यहाँ पहुनई में जाना हो उसके लड़के-बच्चो के लिए मिठाई, खिलोने अथवा टोपी, रूमाल आदि ले जाना बहुत आवश्यक है। पहुनई समाप्त कर घर को लौटते समय लड़के बच्चो को योग्यतानुसार दो एक रुपये दे देना किसी प्रकार अनुचित नहीं है। गृह-स्वामी के नौकर-चाकरों और रसोइये को भी कुछ मामूली रकम पुरस्कार में दी जावे । पहुनई को अवधि में मनुष्य को इस बात की सावधानी रखना चाहिये कि उसका ऊपरी खर्च गृह-स्वामी को न देना पड़े। पाहुने को यह भी उचित नहीं है कि वह किसी बाहरी आदमी को अपने साथ गृह-स्वामी के यहाँ