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पाँचवाँ अध्याय


नखो को दांतों से कभी न काटना चाहिये और दूसरो के सामने तो यह काम कभी न किया जावे । नाक के भीतर के बाल भी समय समय पर कटवा लिये जावें जिसमें वे अपनी बाढ़ से बुडौलपन को बढ़ती न करें। जो लोग सिर के बाल बड़े-बड़े रखना पसंद नहीं करते उन्हें समय-समय पर अपने बाल छोटे करा लेना चाहिये।

दांतों और जीभ तथा आँखों और कानो की स्वच्छता पर भी विशेष ध्यान दिया जावे। जो लोग लहसुन और प्याज खाते हैं अथवा जिन्हें तम्बाकू खाने, बीड़ी पीने अथवा और किसी दुर्गंध. कारी व्यसन की आदत हो उन्हें दूसरों से बात-चीत करने के पूर्व लौंग, इलायची, जायपत्री अथवा कावबचिनी से अपने मुख की दुर्गंध दूर कर लेना चाहिये। यदि किसी समय ये साधन उपलब्ध न हों तो केवल कुल्ले ही से काम चला लिया जाय । किसी किसी की यह आदत होती है कि वे बहुधा मुँहासे फोड़ा करते हैं अथवा बार-बार नाक में अंगुली डालकर उसे साफ करते रहते हैं। ये काम स्वयं घृणित है और दूसरे लोगो के सामने इनकी घृणा और भी बढ़ जाती है।

लोगों को चाहिये कि हाथो को सदैव शुद्ध रक्खें। यह बात उस समय ओर भी आयश्यक है जब किसी से हाथ मिलाने का अथवा किसी को छूंने का काम पड़े। कुछ लोग कागज, पुस्तक के पन्ने अथवा ताश सरकाने के लिए अंँगुली को मुख-रस से अपवित्र करते हैं और उससे अपवित्र की हुई वस्तु दूसरे को दे देते हैं। यह क्रिया बहुत ही अनुचित है। कई लोग डाक टिकट को भी जीभ से गीला करके चिपकाते हैं। यह कार्य और दृश्य बहुत ही घृणित हैं। यदि इन कामों के लिए समय पर पानी न मिले तो सिर के पसीने से काम लिया जा सकता, है जो उस घृणित-द्रव पदार्थ से कहीं अच्छा है।