पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/१०

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पड़ा है कि इन पहाड़ों के ऊपर बरफ़ जमी रहती है जो कभी नहीं गलती। वहां इतनी ठण्डक है कि कोई जीवजन्तु नहीं जी सकता, कोई पेड़ उग सकता है वहां सदा सन्नाटा रहता है और चारों ओर बरफ़ ही बरफ़ देख पड़ती है।

३—हिमालय के पार भारत के उत्तर का देश मध्य एशिया कहलाता है। यहाँ भी बड़ी ठण्ड पड़ती है। धरती बहुधा पथरीली है; पानी बहुत कम बरसता है और बहुत थोड़ी नदियां हैं। पवार इतने ऊंचे हैं कि इन देशों को पृथ्वी की छत कहते हैं। इन ठण्डे पठारों के रहनेवाले अपने डोरों के लिये घास चारे की खोज में इधर उधर फिरा करते हैं। वहां अनाज का उपजाना बहुत कठिन है। इससे वहां के रहनेवालों को अन्न की चिन्ता लगी रहती है।

४—पर हिमालय के दक्षिण की दशा दूसरी है। यही लो चौड़े मैदान हैं जिन पर सूर्य की किरणों का प्रकाश सदा रहता है। दिन में ठण्ड बहुत कम पड़ती है और इनमें बड़ी बड़ी नदियां बहती हैं ; धरती उपजाऊ हैं, पानी बहुत है। सब फसलें अच्छी होती हैं और थोड़े पश्चिम से यहां के रहनेवाले खाने पीने से सुचित रह सकते हैं। यह मैदान पूर्व से पश्चिम पांच सौ कोस तक पक बड़े बाग की भांति फैला हुआ है और इसका नाम हिन्दुस्थान है।

५—इस हरे भरे बाग़ के उत्तर वह बरफ़ की भीत है जिसका हाल हम ऊपर लिख चुके। यह भीत इसकी उत्तर