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लड़ बैठे और उस के प्राण लेने पर उतारू हो गये। तब वह ईरान को भाग गया। ईरान के बादशाह ने उस की आव भगत की और उसे सहायता दी। हुमायू में ईरानी सेना की मदद से काबुल ले लिया और शेरशाह और उस के बेटे के मरने तक उस पर शासन किया। उस के पी वह फिर भारत में आया और पन्द्रह बरस पीछे दिल्ली को अपने अधीन कर लिया।

१२—जब वह अपनी स्त्री और थोड़े से मित्र के साथ पठानों के डर से जो उस के पाछे पड़े थे ईरान भागा जा रहा था तो वहीं सुनसान मैदान में उस के लड़के का जन्म हुआ। मुग़ल बादशाहों को यह रीति थी कि बेटे के जन्म का आनन्द दिखाने के लिये सोना चाँदी हीरा मोती सरदारों को भेंट दिया करते थे।

१३—पर बेचारे हुमायूं के पास उस समय न सोना था न हीरा मोती। उस के खाने का भी ठीक न था पर उस के पास थैली में कस्तूरी का एक टुकड़ा पड़ा हुआ था। उस में बड़ी महक थी। उसने कस्तूरी निकाली और उस में से थोड़ा थोड़ा अपने साथियों का बांट दिया। जब उस की वास चारों और फैली तो हुमायूं बोला "मेरा बेटा जब बादशाह हो तो उस का भी यश संसार में ऐसे ही फैले। मैं उस का नाम अकबर रख रहा हूँ जिस का अर्थ बहुत बड़ा है। मुझे आशा है कि यह बहुत बड़ा बादशाह होगा।