पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/१२४

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चाँदी सोने के बरतनो में खाना न खाऊँगा, न राजपूतों की भाँति दाढ़ी एठूंँगा और न पुआल छोड़ दूसरे बिछौने पर सोउँगा। वह चित्तौर न ले सका। तब उस ने अपने बाप उदयसिंह के नाम पर उदयपुर नगर बसाया। उदयपुर के राणा आज तक प्रतापसिंह की प्रतिज्ञा पालते हैं। वह अपनी दाढ़ी नहीं ऐंठते, बिना पत्ता बिछाये चाँदी सोने के बरतनों में भोजन नहीं करते और बिना पुआल बिछाये पलङ्ग पर नहीं लोते। हिन्दुस्थान के राजपूतों में इन से शुद्ध दूसरा वंश नहीं माना जाता और इन को अब भी अभिमान है कि हमने कभी मुसलमान से हार नहीं मानी और न हमारे कुल की स्त्री मुग़ल बादशाह को व्याही गई।

१५-अब हम तुम को अकबर का रूप बताते हैं। वह

लम्बा था उस का हील डौल भारी था, उस की छाती चौड़ी और बाहें लम्बी थीं। उस का चेहरा गुलाबी रंग का था पर बुढ़ापे में कुछ कुछ भूरा पड़ गया था। उस का बाप तुर्क था और उस की माँ ईरानी थी जिस से वह आधा तुर्क और आधा ईरानी था। उसके शरीर में बड़ा बल था, उस का लड़कएन काबुल के इण्डे पहाड़ी देश में बीता था जिस से वह बड़ा बली हो गया था। उस को पैदल चलने और घोड़े पर चढ़ने का बड़ा अभ्यास था। दिन में तीस चालीस मील तक पैदल चला जाता और सौ मील तक दिन भर में घोड़े पर जा सकता था। वह तैरना जानता था और ऊंची से