पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/१४६

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५.---शिवाजी जानता था कि मेरे सिपाही न इतने मिनती में है और न ऐसे बली हैं जैले अफ़गान के पठान बीर हैं और इन के साथ खुले मैदान लड़ाई में कल्याण न होगा। उसने कहला भेजा कि मैं आपले इरता है, जो आप भुले अकैले मिले तो मैं अधीनता स्वीकार कर । पठाह ने उस की बात मान ली और एक सीपाही साथ लेकर अपने और रक्षकों को छोड़ उन से मिलने को गया। ६.-शिवाजी ने अपने गढ़ से पठानों को आते देखा तो उसने अपनी माँ से कहा कि मुझे आसीस दो कदाचित् मैं फिर तुम्हारा दर्शन न कर सकूँ। उस ने अपने कपड़ों के नीचे लोहे का कदव पहिना और पगड़ी के नीचे लोहे की टोपी रख ली। कपड़े की बांह में एक टेड़ी कटार थी जिल को बिछुझा कहते हैं और दहिने हाथ में लोहे का तीक्ष्ण पाछिपा था जो बामनख कहलाता है। इस बाघनख में दो छरले होते हैं जो हाथ की दो अंगुलियों में पहिम लिये जाते हैं। मुट्टी बांधने पर ऐसा जान पड़ता है मानो लोहे के दो छल्ले पहने हुए हैं क्योंकि छल्ले ही देख पड़ते हैं। ७-जब खाँ शिवाजी के पास आया तो प्रत्येक ने एक दूसरे का विश्वास नहीं किया। उन दोनों के दरमियान झगड़ा हुआ। पठान शिवाजी से अधिक बलवान और फुरतीला बाघनखा