पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/१६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रजा को मारते काटते, उनके गांव जलाते, और उन का माल उठा ले जाते थे। यह जान पड़ता था कि भारत उजाड़ हो जायगा और इसके प्रान्तों में कोई जीता न बचेगा।

          ३७–पानीपत की लड़ाई।
   अफ़ग़ानों से लड़ने के लिये महरठों को तयारी ।
१-पानीपत का बड़ा बैदान दिल्ली से लगभग पचास

मील उत्तर की ओर है। यह बड़ी पुरानी सुप्रसिद्ध रणभूमि है।

२-यहाँ हम ऊपर लिख चुके हैं कि काबुल के बादशाह

बीर बाबर ने तेरह हजा़र तुर्की सेना लेकर दिल्ली के पठान सम्राट् की भारी सेना को धूल की भाँति बहार डाला था और सन् १५२६ ई० में मुग़ल राज्य स्थापित कर दिया।

३-इस स्थान पर मुग़ल राज्य के तुर्की संरक्षक बैराम ने

अकबर के साथ जो उस समय तेरह ही बरस का था हिन्दू सेनापति हेमू के ऊपर विजय पाई और अपने छोटे स्वामी अकबर को दिल्ली के सिंहासन पर बैठा दिया। पानीपत की दूसरी लड़ाई पहली लड़ाई से तीस बरस पीछे १५५६ ई० में हुई थी।

४-और इसी बड़ी रणभूमि पर काबुल के एक दूसरे

बादशाह ने लगभग दो सौ वर्ष पीछे हिन्दुओं की एक बड़ी