पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/१६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(१५८) यह हिन्दुस्थान में मारने लूटने और आग लगाने, छः बार आ चुका था। दिल्ली में जो कुछ नादिरशाह से बचा था उसे वह काबुल उठा ले गया पर अपने बेटे को पंजाब पर शासन करने को छोड़ गया। १०-ज्योंही उस की पीठ फिरी एक नये बड़े पठान सरदार ने मुगल बादशाह को मार डाला और दिल्ली का हाकिम बन् दैवा। शाहजादा शाह आलम को भाग गया और उस प्रान्त के नवाब शुजाउद्दौला की शरण में रहा ।

११---नये पेशवा बालाजीराव ने अब जान लिया कि वह

अवसर आ गया है जो पेशवा बाजीराव ताक रहा था। अब सब सामग्री ठीक है। शिवाजी के समय से अब महरठी सेना बहुत बड़ी और प्रबल हो गई थी। पहले यह सेना सवारों और बालम सरदारों की एक भीड़ थी जिनके पास लम्बे लम्बे बरछे रहते थे। उन की झोलियों मे आट दिन के खाने को चबेना भरा रहता था और वह पचास मील का धापा मारते थे। उन दिनों महरडठे कभी कोई लड़ाई नहीं लड़े। वह भारी हथियार से लदी हुई मुगल सेना के आस पास घूमा करते थे, खेत काट ले जाते थे जिस में बैरियों को अन् न मिले, कुओं और तलाबों में विष डाल देते जिस में मुगल सिपाही पानी को तरसें, कोई सिपाही भटक कर निकल आता तो उसे मार डालते, आधी रात को चुपचाप पहुँच जाते और पहरेवालों को मार के हट जाते और जहाँ