पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/१६७

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तक होता उनको इतना सताते कि वह घबरा कर वहाँ से चले जाते। १२--अक्ष महरडा सरदारों के पास भारी हथियारों से लजी पलल तो और बन्दुक थीं। उन के पास हाथी थे और जहाँ पर पड़ाव पड़ता ऊँचे ऊँचे डेरे खड़े कर दिये जाते जिनमें रेशमी कपड़े लगे रहते थे। अब वह धीरे धीरे जूध करते और स्त्रियाँ भी साथ लिये रहते थे। पेशवा के पास दस हज़ार जबरदस्त पैल सिपाही थे जिनके पास अच्छे से अच्छे हथियार थे और जिनको न्याहिम नामी एक पठान ने पलटन की कवायद सिखाई थी। उसने यह गुण फरासीलियों ले सीखा था। वह दक्षिण के फरालीसी सेनापति की सेना का एक नायक था। इसी से उसने अपना नाम गारदी था पारद रख लिया था। उसके पास दो सौ लोऐं भी। १३–पेशवा ने पहला काम यह किया कि होलकर और सेंधिया के हो बेटों की कमान में एक प्रबल सेना इसलिये भेजी कि पञ्जाव से अफ़सानों को निकाल दे। अहमदशाह तुरन्त काबुल से चला आया, महरठी सेना पर टूट पड़ा और उसे काट डाला। सेंधिया का एक लड़का मारा गया और होलकर अपने देश को भाग गया। शाह दिल्ली पहुंचा पर जब उस ने सुला कि महरठों की बड़ी सेना आगे बढ़ी चली आ रही है तो वह गङ्गा पार Bा गया और रुहेलखण्ड की ओर चला; रुहेले मुसलमान थे