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कहा "इस रीति से फ़रासीसी नहीं लड़ते। आप मुझ को मेरे सिखाये हुए पैदल सिपाहियों और भारी सोपों पर छोड़ दीजिये और मैं आप को दिखा दूंगा कि अफ़गान ऐसे मारे जाते हैं। भाऊ ने उत्तर दिया कि "होलकर गड़ेरिया है और सूर्यमल एक छोटा ज़मीन्दार है, राजा नहीं। दोनों बूढ़े और मूर्ख हैं, लड़ाई का ढङ्ग नहीं जानते और अफगानों का सामना करने से डरते हैं।" राजपूत और और सरदार जो पास खड़े थे उस समय तो कुछ न बोले पर सभा हो जाने पर आपस में कहने लगे 'अच्छा हो जो यह ब्राह्मण भाऊ अफगानों को मार खा जाय। तब यह ऐसे योद्धाओं का कहना मानेगा जो इस से बड़े और बुद्धिमान है।"

१६-इतने में अहमद शाह ने रुहेलों के सरदार नजीबुहोला

को भी अपनी ओर कर लिया और वह तीस हजार हिन्दुस्थानी पठानों को लेकर पहुंच गया।

२०-शुजाउद्दौला जो अवध का नवाद था अब तक

न शाह से मिला था न भाऊ से। दोनों ने उस से सहायता मांगी। शाह मुसलमान था और शुजाउद्दौला भी मुसलमान था। भाऊ हिन्दू था पर भाऊ हिन्दुस्थान का रहनेवाला था, वहाँ नवाब का भी घर था और शाह अफगान था। नवाब दुबधे में पड़ गया। उस ने यह निश्चय किया कि उधर ही चलना चाहिये जिधर जीत की आशा हो पर