पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/१७३

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( १६५ ) और हमारे प्राणों का गाहक है। उसके बाद सब झूठे हैं हम उस की बातों में नहीं आते। उस के बस चले तो हम तुम दोनों को मार डाले और एक भी मुसलमान न बचे। पर हम उस को यह नहीं दिखाना चाहते कि हम उस का विश्वास नहीं करते उस की चिट्ठियाँ आने दीजिये।"

२३-सब नवाब ने अपनी बेगमों और बच्चों को लखनऊ

भेज दिया और आप नजीबुद्दौला के साथ शाह के पास चला गया। शाह ने उस की बड़ी आवभगत की और उसके सेनापति बली खाँ ने नवाब को अपना बेटा बना लिया नवाब भी समझे कि हम अपने भाई बन्दों में आ गये।

२४-जाट राजा सूर्यमल ने सुना कि शुजाउद्दौला शाह से

मिल गया तो वह बोल उठा, “यही अन्त का आदि है। देख रहा हूँ परिणाम क्या होगा।" अंधेरा होते ही वह अपने सिपाहियों को लेकर अपने देश को लौट गया। भाऊ बोला, "जाने दो, अच्छा हुआ। एक जमीन्दार की सहायता से क्या होता है

            ३८-पानीपत की लड़ाई।
            भाऊ का फन्दे में फैसना।
१--कातिक का महीना आने वाला था।

बरसात बीत चुकी थी। दस दिन का बड़ा त्योहार दशहरा भी आ पहुंचा। सब हिन्दुओं का विश्वास है कि जो काम इस दिन उठाया