पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/१७४

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जाता है वह सिद्ध हो जाता है। भाऊ भी दिल्ली से निकला और पानीपत के बढ़े मैदान की ओर चला। दान के पास ही पानीपत का नगर भी है। यहीं पर उस ने डेरा डाल दिया। अपने पड़ाव के चारों ओर उस ने एक बड़ी ६० फुट चौड़ी और १२ फुट गहरी खाई खुदवाई। खाई की मट्टी किनारे डाल कर एक मोर्चा बांध दिया जिसके ऊपर उस ने तो रखवा दी। काशीराव कहता है कि उसके पास ५५००० सवार १५००० पैदल सिपाही इब्राहीम पार्टी की कमान में २०० तोंपे और अनगिनत हवाइयाँ थीं। इनके साथ हजारों पिएदारी और लश्करी थे।

२-अब शाह ने सुना कि भाऊ ने दिल्ली से कूच कर

दिया तो वह भी सहेलखण्ड से पश्चिम की ओर चला और यमुना पार कर पानीपत से दस मील पर डेरा डाला। उस ने अपने पड़ाव की चारों ओर लठो और पेड़ों की भीत बनाई जिसे लास बांधना कहते हैं। उस के साथ नजीबुद्दौला, शुजाउद्दौला और रुहेले सरदारों की जिन में सबसे बड़ा रहमत खाँ था सेनायें थीं। सब मिलाकर कुल ८०००० सिपाही थे। जिनमें ४२००० सवार, ३८००० प्यादे और तोपें थीं । और बहुत से सवार भी थे जो देश में इधर उधर घूमते फिरते थे और महरठों के पास रसद न पहुँचने देते । शाह का लाल डेरा उस की सेना के आगे पड़ा था जिस के सामने कैसे कसाये छोड़े दिन रात खड़े रहते थे।