पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/१७५

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दिन भर शाह पड़ाव भर में घूमा करता और देख भाल किया करता और रात भर ५००० अफ़गानी सवार पहरा देते थे। शाह शुजाउद्दौला और और सरदारों से साफ कहा करता कि निश्चिन्त सोओ तुम हमारे मिहमान हो, हम तुम्हारे बचाने का प्रबंध करेंगे।

३-तीन महीने तक शाह और भाऊ की सेनायें आपने

सामने पड़ी रहीं। नित थोड़े बहुत सिपाही दोनों ओर के लड़ते थे और मारे जाते थे। पठान और रुहेले सरदार घबरा गये पर शाह उन को रोके रहा। उसने कहा "अभी समय नहीं है। अभी चुप बैठे रहो मैं जान बूझ कर ऐसा कर रहा हूँ अन्त में हमारी ही जीत होगी, जल्दी में सब बिगड़ जायगा महरठे दिन दिन निर्बल होते जाते हैं।"

४-शाह का कहना ठीक था। महरठे की बड़ी सेना को कई अठवारे से खाने को बहुत कम मिला था। अब वह

अपने देश दक्षिण में न थी। हिन्दुस्थान में थी। माऊ को अपने नौकरों जाकरों और लश्करियों को भी खाना देना पड़ता था जो किसी सिपाही से कम न खाते थे। अफगानी सवार देश भर में घूमते फिरते थे और महरठों के पास कोई सहायता न पहुँचने देते थे। एक दिन २०० लश्करियों को जो जङ्गल में लकड़ी और घोड़ों के लिये घास लेने गये थे ५००० अफगानी सवारों ने काट डाला। एक दिन अफगान सिपाही कोई २००० महरठों पर जो दिल्ली से