पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/१७८

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८---उसी दिन रात को भाऊ ने सुजल को फिर लिखा

कि मैं फिर भी आशा रखता हूँ कि आए मेरी सहायता करेंगे । पर यह डूबते के लिये तिनके का आसरा था। काशीराव के पास यह पत्र तीन बजे सबेरे पहुँचा इसमें यह लिखा था अब कटोरा मुंडा मुह भर चुका और एक बूंद भी ज्यादा नहीं आ सकता जो कुछ हो सकता है जल्दी कीजिये। नहीं तो जवाब दीजिये। अब लिखी या कहने का अवकाश नहीं मिलेगा।

६-नवाब यह पत्री शाह के पास ले गया। वह जल्दी से

उठा और पूछा, क्या समाचार है ? नवाब ने कहा समाचार यह है कि काशीगान कहता है कि महरठे हमारे ऊपर चड़ आये। उसी समय शाह जल्दी से उठ कर घोड़े पर सवार हो मैदान में आया और सेना को तैयार होने का हुक्म दिया। जब मैदान में पहुंचा तो उसने अपने फारसी हुके के लाने का हुक्म दिया और जब तक काशीराव पत्र सुनाता रहा वह हुक्का पीता रहा। वह पढ़ भी नहीं चुका था कि तोपों की बाढ़ सुनाई दी और सड़के के फीके उजाले में महरठे सवार दायें बायें आते दिखाई पड़े। शाह ने सच अपना हुक्का हुऋचाले को दिया और धीरता से कहा, "तुम्हारे नौकर का समाचार बहुत ठीक है" और वह सेना की ओर ठीक ठाक करने गया ।