पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/१८४

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पागल हो रहा था और अपने भागते हुए सिपाहियों से पुकार पुकार कहता था “भाइयो! कहाँ भागे जा रहे हो, तुम्हारा देश बहुत दूर है मुझ को देखते ही वह बोल उठा “मेरे बेटे शुजाउद्दौला से कह दो कि मेरी सहायता को आ जाया नहीं तो हम लोग कहीं के न होंगे। काशीराव यह सन्देसा पाते ही दौड़ गया पर शुजाउद्दौला अपनी जगह से न टला।

 १२–पश्चिम की ओर सेंधिया और होलकर नजीवद्दौला

की ओर बढ़े थे पर उस तक दोनों न पहुँच सके। यह अतुर बूढ़ा योधा सदरे से धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था। पहले उसने अपने बेलदारों को सौ गज आगे भेज दिया कि खाई खोद के छाती भर ऊँची भीत बना दें। जब यह बन गई तो नजीबुहोला आगे चला आया और जब उसके सिपाही उस मोर के पोछे आये तो उसने बेलदारों को ऐसी ही दूसरी खाई खोइने को आगे बढ़ा दिया। काशीराब उस के पास गया तो वह बोला, “मैं जोखम में पडूगा अफगानों का देश है वह वहाँ जा सकते हैं मैं भाग कर कहाँ जाऊँगा, मेरा सो घर थहीं है, मैं भूल चूक न करूंगा। जब सधिया और होलकर आगे बढ़ते देख पड़े तब उसने दो दै हजार वान एक साथ छोड़वा दिये। उसके सिपाही मोरचों के पीछे खड़े रहे ; हवाइयों के छूटने और चिनगारियों की बौछार से महरठों के धोड़े हर गये और न बढ़े।