पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/१८५

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 १३-अब तक महरठे बढ़े चढ़े रहे पर यह छः घण्टे से

लड़ रहे थे। लड़ाई से पहले भी वह भूखे थे, थक भी गये थे और भूख प्यास से भी वयाकुल थे। शाह के पास अब भी दो पलटने ताजी बैठी थी। इनमें उसकी खेना के चुने हुए वीर थे; डील डौल में बड़े लोहे के कवच पहने और बड़े बड़े तुकी घोड़ों पर सवार थे। उन्हों ने और उन्न के घोड़ों ने भी सबेरे पेट भर खाना खाया था।

 १४--एक बजे शाह को उठने और विजय पाने का

अवसर देख पड़ा। उस ने पहले दो हजार सवार दौड़ाये और वह आज्ञा दी कि वली खां के पास से ओर लोग भागे जा रहे हैं उनको रोको और जो लौट कर लड़ने न आये उन्हें मार हो। इस रीति से उन्हों ने आठ हजार आदमी फेरे। इसके पीछे उस ने दहिने अङ्ग में रुहेलों की सहायता के लिये चार हजार सवार भेज दिये। फिर उसने इस हज़ार चुने हुए सवार चली खाँ की कमान में करके भाऊ और विश्वासराप के ऊपर धावा मार दिया। मुसलमान दीन दीन चिल्लाते हुए थके हुए महरटों पर पटे। वह डील-डौल में बड़े और बली थे, बड़े भारी घोड़ों पर सवार थे और महरों की मासि थके मंदे न थे।

१५---बली खाँ की राह नक़शे में बुन्दीदार लकीर से

दिखाई गई है। सामने से बली खाँ आया। पसन्द खाँ की कमान में बांय अङ्ग में जो पांच हजार सवार कोतक खड़े