पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/१८६

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( १०८ ) थे उन्हों ने और नजीब खाँ की रुहेला सेना ने जो मोचों के पीछे से निकल आई थके महरठों के दहिने पक्ष को छाप लिया।

१६-साथ ही साथ दो भारी धावे एक आगे से और एक

दहिने अङ्ग पर पड़े तो महरठी सेना के छक्के छूट गये। फिर भी एक घण्टे तक बड़ी वीरता से लड़े। विश्वासराव अपने हाथी ही पर चढ़ा मारा गया। भाऊ भाग खड़ा हुआ उस के पीछे उस के सिपाही भी आगे। एर दुर न जा सके। ताजे़ अफसान घोड़ों पर सवार उन के पीछे पड़े। उस दिन तीसरे पहर तक चालीस हजार सिपाही काम आये। बेचार लश्करी और कुछ पैदल पानीपत के नगर के भीतर भाग गये। पठानों ने नगर के चारों ओर कड़ा पहरा बिठला दिया और दूसरे दिन सब को बाहर निकाला। सब को थोड़ा थोड़ा चवेगा नचाने को और थोड़ा पानी पीने को दिया गया। मदं सब 'काट डाले गये और खियाँ और बच्चे दासी की भाँति हाँके गये। क्रूर अफगानों ने किसी पर दया न की। भाऊ की लोथ खेत में मिली। सेंधिया पकड़ लिया गया और मार डाला गया। इब्राहीम घायल हो गया था पीछे उन्हीं घावों से मर गया। होलकर और गायकवाड़ भाग गये। लोग कहते हैं कि पानीपत के खेत में दो लाख महरठों के प्राण गये।

१७–एक हिन्दू महाजन ने लड़ाई का समाचार एक