पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/१८७

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चिट्ठी में लिख कर दक्षिण में भेज दिया। यह चिट्ठी पेशवा को दिखाई गई इसमें यह लिखा था, “यो मोती गल गये सत्रह अशर्फियों खो गई चाँदी और तांबे की शिन्ती नहीं हो सकती।" मोती भाऊ और विश्वासराव थे अशर्फियाँ महरता सरदार थे और बाँदी और तांबा सिपाही थे। १८....पेशवाओं ने जो यह सोचा था कि दिल्ली में बैठ कर हिन्दुस्वरमा का शासन करेंगे, उसका यह परिणाम हुआ ! बाजीराव थोड़े ही दिन मैं मर गया। लोग कहा है कि ऐसा कोई महरका कुल न था जो पानीपत के खेत में अपनी किती बन्धु के मारे जाने के लियेल रोया हो। १६-अहमद शाह के पठान हिन्दुस्थान में बहरे और वह तुरन्त काबुल लौट गया। दिल्ली ले जाने के पहले उसने शाह आलम को तख्ता पर बैठाया और उसके बादशाह' होने की डौड़ी पिटवा दी और नजीबुहौला को बज़ीर बना गया। ४०–अङ्गरेजों के भारत में आने का कारण । फ़रान्सीसियों से लड़ाई। १-अङ्गरेज़ पहले पहल भारत में व्यापार करने माये थे। वह ऐसी चीज मोल लेने आये थे जो विलायत में नहीं