पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/१९

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पर किसी से धनुष उठा तक नहीं सका। किसी किसी ने तो उसे हाथ भी नहीं लगाया। ५-श्रीरामाचाइजी ने उस भारी धनुष को लहज ही उटा लिया और ज्यों ही उसको झुकाने लगे, उसके दो टुकड़े हो गये। लोग बधुत प्रसन्न हुए और सीता का दीप जलान्ट्रज्मी के साथ बड़ी धूम धाम से विवाह हो गया। ६.-श्रीरामचन्द्रजी चार भाई थे। पर उनके पिता महाराज मान उन्हीं को बहुत अधिक मानते थे, और यह चाहते थे कि श्री रामचन्द्र ही उनके पीछे के राजा हो। पर उनको दीन शानियां थीं, और उनकी लव से छोटी रानी जिन से श्रीपाइलीन थे, अपने बेटे को राज्य का उत्तराधिकारी नाना साहती थीं। महाराज शारथ ने एक बार उनको यह वचन दिया था कि तुम जो मांगोगी वही तुमको देंगे। उसी वचन की सूध दिलाकर रानी ने कहा "राम को चौदह बरस के लिये दल को मेनेजर दीजिये और मेरे लड़के को अपना उत्तराधिकारी बनाइये, जिसमें आपके पीछे वही राजा हो।" बूढे राम को रानी की बातें सुन कर बड़ा दुख हुआ। अपने प्यारे बेटे को बन कैसे भेज सकते थे। अवध के रहनेवालों ने जो जाना कि ऐसे सुन्दर और ऐसे वीर राजकुमार को वनवास दिया जाता है तो, उन्हें बड़ा सोच हुआ और वे रामचन्द्रजी ले बोले कि “आप धन को