पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/२०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(१६३)

१०-यह १७५२ ई० का अरकाट का घेरा बहुत प्रसिद्ध है।

कारण यह कि इसी में अङ्रेजों की हिन्दुस्माल में पहली जीत हुई। इस ने भारतवासियों को दिखा दिया कि अङ्करेज़ कैसी बहादुरी से लड़ते हैं ; इस ने यह भी दिखा दिया कि हिन्दुस्थानी सिपाही जो उन को अच्छे हथियार दिये जाये और चतुर अफसरों की कमान में ले जाय तो कैसा पराक्रम दिखा सकते है। यहीं है फ्ररासिसियो की काया पलट हुई ! अंगरेज़ ज़ोर पकड़ते गये और समाधिपः निर्वल होते गये यहाँ तक कि वह कुछ भी न रह गये।

११-काश्य लिला लौट गया। वहाँ पहुँचते ही उस ने अपने बाप का सारा ऋण चुका दिया। अब बूढ़े बाप को उस का बेटा ही सब कुछ था। वह कहा करता था कि हमारा दूध तो बड़ा सवार निकला !

जिसके बादशाह ने उसे फोज का करनल बना दिया और ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने उसको ५०० पाउण्ड दार की एक तलवार भेट दी। पर उसने यह तलवार अहण की जब तक कि उन्हों ने वैसी ही एक दूसरी तलवार मेजर लारेन्स को न दी। कलाइव ने कहा “बह मेरा सरदार है मैं उस की आधीनता में लड़ा अपने काम में वह मुह से घट कर नहीं है। इस कारण उसे भी वही पुरस्कार मिलना चाहिये। इसके पीछे क्लाइव बहुत प्रसिद्ध हुआ और अरकाट का वीर कहलाया जाने लगा।