पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/२२

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है-श्रीरामचन्दनी के अवध ले जाने के थोड़े ही दिन पीछे जुड़े राजा मारे सोच के मर गयो। भीम की सौतेली मां ने समझा कि अब मेरा लड़का भरत राजा करेगा, पर मरत बड़े सलन और बड़े धर्मारमा थे और श्रीवासी से बड़ी प्रीति रमते थे। भरत श्रीचन्द्राधी को ढूंढ़ने निकले और उनसे भेंट हुई तो बोले, "आप घर लौट सलें और अपना राज ले।" पर श्रीरामचन्द्रजी र लौटे और बोले, हमारे पिता यह बचन दे चुके हैं कि, हम चौदह बरस बन्द में गई और हमने उनका वचन मान लिया है। क्षत्रिय राजकुमार को अपनी बात पर द्वन्द रहना चाहिये। जब तक चौवह बरस न हीस जायेंगे हम अवध न जायेंगे।" इस पर भरतजी लौट आये। पर उन्होंने राजा बनना स्वीकार न किया। उन्होंने राज-सिंहासन पर धीरामचन्द्रजी की खड़ाऊं रख दी जिसमें, लोग जानें कि श्रीरामचन्द्र ही राजा है और आप उनके लौटने तक राज संभालते रहे। १. रामचन्द्रजी वन में कई बरस रहे और वहां उन्होंने अनवासियों से मेल कर लिया। इनमें से कुछ लोग छोटे और कुरूप थे और वनों में रहते थे, इसी ले लम्बे गोरे और सुन्दर शानिय उनको बन्दर कहते थे। एक दिन जब राम और लक्ष्मण दोनों अहेरे को दूर निकल गये थे, एक पापी राजा जिसका नाम रावण था