पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/२२०

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( २१२ ) थालम नाममात्र को कम्पनी का अधिराजा था। अंग्रेजों से पहले जो नवाड बंगाल का शासन करते थे उन्होंने बहुत दिनों से उस को नज़र देना बन्द लर दिया था और न उसे अपना बादशाह मानते थे पर क्लाइव ने १७६५ में इलाहाबाद की सन्धि से उसे २६ लाख वार्षिक देने की प्रतिज्ञा की थी और उसके बदले में कम्पनी को बंगाल की दीवानो मिली थी। बादशाह ने यह भी मान लिया था कि हम अंगरेज़ी सेना की रक्षा में शाकामा रहेंगे और इस रीति से रहने पर उन को अधिकार दिया गया था कि गङ्गा-यमुना के दोधार पर इलाहाबाद को राजधानी बना कर शासन करें। ..--पर शाह आलम अंग्रेजों का पक्ष छोड़ कर महरठा सेंधिया के पास चला गया। उस की इस चाल से बवाल का भला हो माया अब तक उस देश पर कर लगा के शाह बालम को २६ लाख दिया जाता था और वह देश इस भार को उठन सकता था। हेस्टिङ्गस् ने यह देना बन्द कर दिया और तब से मुगल बादशाह नाममात्र की भी ईस्ट इण्डिया कम्पनी का अधिराजमा रह गया। इसी समय दोआब का देश जो शाह आलम को छोड़ दिया था अवध के नवाब शुजाउदौला को दे दिया गया और शुजाउदौला ने । को इसके लिये ५० लाख रुपये दिये। १०-इस रूपये की बड़ी आवश्यकता थी क्योंकि इस.