पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/२२६

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3 २-दो सौ बरस हुए जब हैदरअली पैदा हुआ था। उसका बाप क साधारया वारीद सिपाही था। हैदर पढ़ा लिखा था; उसने पहले सिपाही का काम सीखा था वह थोड़े से डाकुओं का सरदार था उनको तनखाह न देता पर लूट के माल में साभी करता था। साथी गांव से माल असबाबदार बकरियाँ और अमाज तक लूट ले जाते थे। वह लूट के माल से आधा अपने साथियों को देता था और आधा आप रख लेता था। ३-हैदर के साथी बढ़ते गये हैदरअली। और कुछ ही दिनों में वह इतना बली हो गया कि उस ने एक पहाड़ी गढ़ ले लिया अब वह अपने को सरदार कहने लगा। उस ने अपने सिपाहियों को कवायद लिखाई। मैसूर के हिन्दू राजा ने उसका नाम सुना तो उसको अपने यही नौकर रख लिया। हैदर के आदमी भी रख लिये गये और वह जैसूर राज की सेना का सेनानायक बना दिया गया। वह दिन दिन बली और धनी होता गया और अन्त में प्रधान सेनापति हो गया। ४-उस समय जैसूर का राज बहुत छोटा था। यह