पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/२४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. (२३२) यह है, पूना का पेशवा, गुजरात का गायकवाड़, ग्वालियर का सधिया, इन्दौर का होलकर, और नागपुर का भोसला। लाडे वेलेजली की शरतें गायकवाडने मान ली और उस समय से गुजरात में उस की सन्तान शान्ति पूर्वक राज्य करती है। पेशवा होलकर से हार कर अपनी जान लेकर बाबई भागा। वह भी लार्ड बेलेजली की बात को मान गया और अंग्रेज़ी सेना जो उसकी सहायता को भेजी गई थी उसके खर्च के लिये अपने राज्य का कुछ भाग दिया। यह बराई हाते का एक टुकड़ा है। और तीन महरठा सरदारों ने न माना उन्हों ने लड़ाई छेड़ दी। सधिया और भोंसला चार बड़ी लड़ाइयों में हराये गये और अन्त में उन्हों ने भी येलेजली की शत्तै मान ली और सेंधिया ने अपने राज का यमुना के उत्तर का भाग और भोलला ने उड़ीसा अंग्रेज़ों को सौंप दिया। यह देश सन् १७६५ ई० में इलाहाबाद की सखि में शाह आलम ने अंग्रेज़ों को दे दिया था पर अभी तक यह भारठों के हाथ में था। १४-ईस्ट इण्डिया कम्पनी लार्ड वेलेजली के इन देशों के लेने से प्रसन्न न हुई। उन के व्यापार का सब मुनाफा सब लड़ाई में खर्च हो गया था। उन्हों ने एक और गवरनर जेनरल भेजा और उस को हुकुम दिया कि चाहे जो हो जाय भारत के किसी राजा से न बोलें और महश्ठों या और किसी से लड़ाई न लड़े।