पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/२४८

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( २४० ) मिलता था तो उसके मित्र बन जाते थे। जब वह अकेला? रस्ते या अने बन में पहुंचता था तो उस के गले में कमाल डाल कर ऐसा ऐंठते थे कि वह मर जाता था; फिर उस की लाश को गाड़ देते थे और उस का माल असबाब ले लेते थे; ठग। जब इस काम से छुट्टी पाते थे तो खेती बारी और दुकानदारी के धन्धे में लग जाते थे और किसी को यह सन्देह न होता था कि वह लोग पापी बदमाश हैं। ठगों की एक बोली और बन्धे इसारे थे जिन को उनके सिवा और कोई नहीं समझता था। ६-बेण्टिङ्क ने अगरेज़ी अफ़सरों को आछा दी फि जाओ ठगों और डाकुओं की जड़ खोद डालो। सात आठ बरस में पन्द्रह सौ ठग पकड़े गये। ऊपर कुछ