पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

(१७)

"चलो हरे भरे खेत देखें"। दोनों बाप बेटे सुन्दर सुहावने बाग़ बावली, हरे हरे खत, फलों से लदे ऐड देखते चले जा रहे थे। गौतम को भी बड़ा आनन्द मिलता था। इतने में उनकी आंख एक हलचाहे पर पड़ी। यह हलवाहा एक बैल हांक रहा था जिसकी पीठ पर बड़ासा घाव था और उसको लाठी से मार मार कर चला रहा था। बेचारा बैल पीड़ा के मारे पर पड़ता था। इल के पीछे गौतम ने देखा कि एक बाज एक पिड़की को मार कर खा रहा है। आगे देखा कि एक पिड़की कीड़े चुन चुन खा रही है। यह चरित्र देख गौतम को बड़ा दु:ख हुआ और अह घर लौट गये।

४—इसके कुछ दिन पीछे गौतम ने एक सपना देखा। उन्हें एक बुड्ढा देख पड़ा। वह बुढ़ापे से ऐसा निर्बल हो गया था कि उससे चलने की कौन कहे खड़ा भी न हुआ जाता था। इसी समय उनसे सपने में किसी ने कहा "गौतम तुम भी एक दिन ऐसे ही बुड्ढे और निर्बल हो जाओगे।" "फिर उनने देखा कि एक रोगी दुख के मारे कराह रहा है फिर उनसे किसी ने कहा "गौतम तुम भी एक दिन ऐसे ही दुखी होगे।" फिर उन्हें एक मनुष्य धरती पर पड़ा दिखाई दिया उसका शरीर ठण्डा था और उसके हाथ पैर अकड़ गये थे। उसी समथ कोई बोल उठा "गौतम तुम्हें भी एक दिन मारना है।"

५—गौतम इस समय तीस बरस के हो चुके थे। दूसरे दिन गौतम, अपने मा, बाप, स्त्री, बच्चे सब को छोड़ कर वन को