पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/३२

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हो तो उसे यहां उठा लाओ हम भी उसी पर बैठ कर न्याय कर जिसमें हमसे कोई भूल चूक न हो।" ११-इस पर बहुत से बेलदार और मजदूर यहाँ साये और उन्होंने धरती को दूर तक खोद डाला। दिन भर कठिन परिचम करने पर उनको विक्रम का सिंहासन मिला। यह एक मोटे संगमरमर का बना था और उसी पत्थर मैं खुदे हुए बारह पंखधारी सिंह उसे उठाये हुए थे। इस सिंहासन को पचास मनुष्य उठाकर राजा के महल में ले जाये। सिंहासन्न पेसा भारी था कि उटानेवाले राह में कई जगह उठते बैठते गये। यह सिंहासन दरवार के कमरे में रखा गया और धोने पोंछने पर पत्थर दर्पण की भांति चमकने लगा। १२---दूसरे दिन राजा दरबार के कपड़े पहिन कर सिंहासन पर बैठने चला पर ज्योंही उसने बैठना चाहा सिंह बोल उठे और नाजा घबरा कर हट गया। हर सिंह थारी बारी यह कहता था "क्या थाप विक्रमादित्य के सिंहासन पर बैठने के योग्य हैं ? क्या आपने कभी दूसरे राजा का देश या उसका धन लेने की इच्छा नहीं की, जिसका कि आप को कोई अधिकार न था? क्या आपने कभी ऐसा काम किया जिसे आप उचित न समझते थे? क्या आप का अन्तःकरण ऐसा शुद्ध और ऐसा पाप रहित है जैसा कि एक छोटे बच्चे का होता है? क्या आप इसके योग्य हैं ?