पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/३३

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१३-राजा जानता ही था कि मैंने कई बार और राजाओं का धन और उनका लेने के लिये उनले लड़ाई की है और बहुतेरे ऐसे काम किये हैं जिन को मैं श्राप उचित न समझता था। सिंहासन का गौरव उसके चित्त पर छा गया और उसने सच बोलना अपना धर्म समझा। वह बोल उठा, "मैं इसके योग्य नहीं है उसके पीछे सिंहों ने अपने पंख फैलाये और सिंहासन को आकाश में उड़ा ले गये। १४----इस विचित्र घटना के देखनेवालों को बड़ा अचरज हुआ पर राजा उदास हो गया। तब बहो बुड्डा सरदार जो पहिले बोला था राजा को समझाने लगा “महाराज आप उदास न हो। संसार में कोई राजा नहीं है जो उस सिंहासन पर बैठ सके। बलदिये के लड़के का अन्त:करणा शुद्ध था। इस से वह उस पर बैठ सका था। पर वह राजा कौन है कि जिसका अन्त:करण छोटे बच्चे की भांति शुद्ध और पाप रहित हो। ६- -राजपूत। १-नये हिन्दू समय के पीछे राजपूतों का समय आया। इस समय में राजपूत राजा लोग भारतवर्ष के हर प्रान्त में राज करते थे। हिन्दुओं के चित्र में नया हिन्दूधर्म गड़ गया था। राजपूत राजपुत्र' का अपभ्रंश शब्द है