पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/३५

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३--अपने घर में शान्त रहकर भर जाने से राजपूत को घृणा थी! उसकी यह बड़ी लालसा रहती थी कि रणभूमि में लड़ता हुआ मर जाय। हिन्दुओं के सबसे पुराने धर्मशाला के रखनेवाले मनु का वचन है कि राजा को लड़कर मरना चाहिये। मनुस्मृति में लिखा है कि जब राजा बुड्डा होजाय तो उसे चाहिये कि अपना धन प्राह्मणों में बांट है, अत: राज अपने बेटे को १३ और रणभूमि में लड़ता मर जाय । और जो लड़ाई का अवसर न मिले तो अन जल छोड़ दे और मर जाय। ४- जैसलमेर का एक रावल राजपूत था। जब वह बहुत बुड्ढा हो गया और उसने सोचा कि अब बहुत दिन नहीं जी सकते तो उसे बड़ा दुख हुआ क्योंकि उस से किसी बैरी से लड़ाई न थी। इस समय में अफगानी बादशाह थे और एक अफ़गान सरदार मुलतान का हाकिम था। इस ले रावल कई बार लड़ चुका था। रावल ने सरदार से कहला भेजा कि “हम तुमसे एक युद्ध और चाहते हैं। स्वीकार कर लो तो बड़ा उपकार हो जिसमें हम हथियार हाथ में लिये हुए मर जाये और हमको स्वर्ग मिले।" सरदार ने मान लिया और कहा कि "आओ हम तैयार है।" रावल ने अपने सगोलियों को बुलाया। सात सौ राजपूत जो जन्म भर लड़ाई में उसका साथ देते रहे घर से बिदा होकर उसके साथ लड़कर मरने को चल बड़े हुए।