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पृथ्वीराज ने उसको हाथी दाँत पर बना हुआ अपना चित्र दिया। बुढ़िया उसे लेकर कनौज पहुंची और वहाँ फिर नौकर हो गई। वह संयुक्ता के पास रहती और उसकी टहल किया करती थी। यहाँ उसने संयुक्ता को पृथ्वीराज का चित्र दिया और उसके प्रेम का सन्देशा सुनाया। संयुक्ता ने पृथ्वीराज की वीरता का बखान सुना ही था। पठानों पर विजय पाने का हाल सुन कर उसने पृथ्वीराज के साथ ब्याह करना निश्चय कर लिया। बुढ़िया दाई फिर दिल्ली लौट गई और वहाँ पृथ्वीराज से सारा ब्यौरा कह दिया। पृथ्वीराज ने प्रतिज्ञा की कि मैं संयुक्ता को अपने घर लाऊंगा चाहे इस यत्न में मेरे प्राण भले ही चले जायें।

१०—इसी अवसर पर पृथ्वीराज के पास जयचन्द के दूत आ गये और उससे बोले कि तुमको यज्ञ में द्वारपाल का काम करने के लिये बुलाया है। पृथ्वीराज को बड़ा क्रोध आया। वह जयचन्द को राजाधिराज कैसे मान सकता था और द्वारपाल का काम करना उसके लिये बड़ी गाली थी क्योंकि द्वारपाल सदा नीच जाति के लोग हुआ करते थे

११—स्वयंवर में बहुत से राजपूत राजा और राजकुमार दूर दूर से आये। सब को यह आस थी कि राजकुमारी हम ही को वरेंगी। सभामण्डप में सब को उचित स्थान दिये गये और वह दर्शकों से भर गया। पृथ्वीराज न आया तो जयचन्द ने उसकी सोने की मूर्ति बनाई और द्वारपाल की