पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/७६

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। गई। २-जूदा राजा अपनी जीत से बहुत प्रसन्न या क्योंकि वह एक ऊँचे कुल का था और उसके पुरखा लड़ाई में कभी अन हारे थे। उसने एक बड़ा ज्योनार किया जिसमें धनी कंगाल सच बुलाये गये। यह रास रंग कई दिन तक रहा। उसकी रानी ने भी अपने पाहुने का बड़ा आदर सम्मान किया। ३-ज्योनार समान भी न हुआ था कि अमावस्या आ रानी और उनकी सहेलियाँ अपने कुल धर्म की रीति से नहाने जाया करती थी। रानी बड़ी धर्मात्मा थी और कभी उसने धर्म कर्म नहीं छोड़ा था। उस समय गङ्गा जी अरगल राज के बाहर बहती थीं और उसका किनारा पठान पलटनों के हाथ में था। रानी बेचारी या करती; वह अपने पति से इस डर से पूछना नहीं चाहती थी कि कहीं वह मना न कर दें, और कहें कि अगले महीने में अमावस्या नहा लेना। और जो वह एक बार नाहीं कर देंगे तो उनका कहना मानना ही पड़ेगा। ४-रानी ने बिना किसी सिपाही के अपने सहेलियों के साथ जाना निश्चय किया। जैसे तारे खिले और राजा और उसके पाहुने खाना खाने बैठे थे वह और उसकी सहेलियाँ एक एक करके चुपके चुपके महल के बाहर निकलीं और आंगन में साथ हो, गलियों से चुप चाप जङ्गल की ओर चली। और रातों रात जल्दी जल्दी चल कर तड़के गङ्गा जी के घाट पर पहुंच गई।