पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/८७

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सोच कर वह किले में एक ही दो सिपाहियों के साथ गया। वह राजपूतों के हाथ में था। वह चाहते तो उसे मार भी डालते पर वह अपनी बात के साये थे। अलाउद्दीन ने पदिनी का सुख दर्पण में देखा। चित्र में पदिानी की टहलनी एक दर्व लिये खड़ी है उसमें पशिनी का मुंह देव पड़ता है। पर के पीछे वह खड़ी है। ५-अलाउद्दीन ने तब भीमसेन से कहा कि जैसे मैंने तुम्हारा विश्वास किया वैसा ही तुम मेरा करो और किले के बाहर आकर ऐसे विधा दो जैसे मित्र मित्रसे। भीपसी उसका विश्वास कर जैसे ही गढ़ के बाहर गया वैसे ही तुरकी सिपाही जो इधर उधर छिपे थे उस पर टूट पड़े और उसको पकड़ लिया। अलाउद्दीन ने कहा कि मैं भीमसेन को न छोडूंगा जब तक पगिनी आप मेरे पास न आयेगी और मेरे साथ अपना व्याह कर द लेगी। ६.-राजपूनों ने जब यह सुना तो उनके क्रोध का वारापार न रहा। पहिली को भी यह डर लगा कि कहीं राजा मार डाला जाय। पर वह बड़ी चतुर थी उसने अपने मन में कहा "तुर्क बड़े जीव होते हैं। उन्होंने हम लोगों को धोखा दिया। हमें भी चाहिये कि उन्हें छकाव। यह निश्चय करके उसने अलाउद्दीन से कहला भेजा कि मेरा पति छोड़ दिया जाय तो मैं अपने को सौंप दूंगी। पर मैं अलाउद्दीन की मलका होने आऊँगी इस लिये मैं अपने साथ