पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/९९

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बायर लिखता है कि पठानों का क्रम ठीक ना था और जो बाबा करते थे उनमें न शक्ति थी और न चतुराई ।

८--लड़ाई में चतुर सेनानायक   सदा इस बात का उद्योग

करता है कि देशी को घेर ले और बगल से उसपर धावा कर दें। वह इस बात का भी प्रबन्ध करता है कि उसकी सेला की बगल घर बैरी का घात न लगे। यही बाबर ने पानीपत की लड़ाई में किया और इसी से उसकी जीत हुई। यही इब्राहीम लोदी ने न किया और इसी से यह हार गया।

६ -चित्र ही से तुम जान सकते हो कि बाबर ने कैसी

चतुराई से अपनी सेना की बगलों की रक्षा की थी। उसकी दाहिनी ओर पानीपत का किला और नगर है। उधर से उस पर धावा नहीं किया जा सकता था: बाई ओर बाबर ने गहरी खाइयां खोदवाई थी और उनके बाहर पेड़ों के ठूंठ और डालियों के ढेर लगा दिये थे जिसमें पठान सवार बाई ओर से न टूट पडे़ं ।

१०---सेना के आगे ऐंठें हुए तलमों से बंधी हुई तो

सजी थी और बीच बीच में बालू भरे मरे बोरे तले ऊपर आदमी की छाती की ऊंचाई तक गंजे थे, उन बोरों को तुरा कहते हैं। तोपों और बोरों से एक ऐसी भीत बन गई थो जिससे आगे से उनपर धावा न हो सकता था। इस भीत के पीछे बन्दूकची खड़े थे जो तोपों के बीच बीच में