कमला अ़लाउद्दीन को देडाली गई!"
कमला,-"बहिन! फिर वही बात! हाय! तुम पागल तो नहीं होगई हो?"
हीरा,-"नहीं, महारानी! मैं अपने होशोहवास में हूं। सुनो, मैं ख़ुद कमला बनकर अ़लाउद्दीन के पास जाऊंगी और तुम अपने प्यारे महाराज के ही पास रहोगी; लेकिन आजसे तुम अच्छी तरह अपने तई छिपाए रहना और इस राज़ को हर्गिज़ खुलने न देना, जिसमें इस भेद को कोई जानने न पावे, वर न क़यामत बर्पा होगी। इस राज़ के खुलने पर चाहे मेरी जान जाय, इसकी तो मुझे ज़रा भी पर्वा नहीं, मगर बदज़ात अ़लाउद्दीन काठियावाड़ की एक ईंट भी साबूत न छोड़ेगा; इस बात का ख़याल ज़रूर रखना।"
यह एक ऐसी बात थी कि जिसने विशालदेव और कमला देवी का ध्यान दूसरी ओर पलट दिया और फिर तीनों ने मिलकर इस बारे में ख़ूब बहस की। अन्त में हीरा ही जीती, उसकी बात को विशालदेव और कमलादेवी ने स्वीकार किया और- "अपमानं पुरस्कृत्य मानं कृत्वा तु पृष्ठके। स्वकार्य साधयेद्धीमान् कार्यध्वंसो हि मूर्खता,-" इस नीति के अनुसार उसी दिन राजा ने फ़तहख़ां से कहला