पृष्ठ:हीराबाई.djvu/२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१९
बेहयाई का बोरक़ा



देवी नहीं है।' आख़िर एक दिन फ़तहख़ा की फ़ौज उसपर आ टूटी और लालन का डोला लूट दिल्ली की ओर कूच करगई। इधर सिपाहियों ने अपनासा मुंह ले, विशालदेव से आकर देवलदेवी के लूटे जाने का हाल कहा, जिसे सुन ज़ाहिरा तौरपर तो राज-महल में शोक मनाया गया, पर फिर विशालदेव ने रामदेव को बुलाकर तथा सब गुप्तभेद उसे समझा बुझाकर देवलदेवी को चुपचाप देवगढ़ भेज दिया।

सचमुच लालन बड़ी सुन्दर लड़की थी; उसे देखतेही अ़लाउद्दीन ने उसका निक़ाह अपने लड़के ख़िज़रख़ां के साथ कर दिया था। ख़िज़रख़ां और लालन में जिन्दगी भर बड़ी मुहब्बत रही।

इसके बाद एक दिन हीराबाई ने यह सोचकर कि,-"मेरी और कमला की सारी आफ़त की जड़ यही पाजी फ़तहख़ां है; अ़लाउद्दीन से कहा कि,-"आपके लायक सिपहसालार फ़तहख़ां ने मेरे साथ बुरी छेड़छाड़ की थी।" यह सुन उस बेवकूफ़ ने अपने नमकख़ार सिपहसालार फ़तहख़ां को बेरहमी के साथ कटवा डाला था। अगर वह जीता रहता तो शायद अ़लाउद्दीन के मरने पर उसके लड़के ख़िज़रख़ां को गु़लाम मलिक काफ़ूर आसानी से न मार सकता।