पृष्ठ:हृदयहारिणी.djvu/२

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श्री:
प्रथम संस्करण का निवेदन।

तेरह बरस के लगभग हुआ, जब कि,—सन् १८९० ई॰ में, हमारे अन्तरङ्ग मित्र "ब्राह्मण" सम्पादक, स्वर्गीय प्रेमदेव, पण्डित प्रतापनारायण मिश्र (कानपुर-निवासी) सुप्रसिद्ध "हिन्दोस्थान" दैनिक पत्र के सम्पादक हुए थे, तो उन्होंने उक्त पत्र में लेख और आख्यायिका लिखने के लिये हमें बहुत ही अनुरुद्ध किया और हमारे लेखों को "स्वतंत्रस्तम्भ" में स्थान देने की प्रतिज्ञा की; अतएव हमने भी उक्त प्रियमित्र का अनुरोध पालन करने के लिये कलम उठाई और दो-तीन महीने तक लगातार उक्त पत्र के लिये कई लेख लिखे, जो उक्त पत्र में छपे हैं। उन्हीं दिनों प्यारे प्रताप की प्रेरणा से हमने "हृदयहारिणी" उपन्यास लिखा और वह (उपन्यास) ७ वीं अक्तूबर सन् १८९० ई॰ के हिन्दोस्थान में छपना आरम्भ होकर कई संख्याओं में समाप्त हुआ।

यद्यपि इसका उपसंहारभाग (लवङ्गलता उपन्यास) भी "हिन्दोस्थान" में छपने के लिये हमने उसी समय (वा सन् में) लिख डाला था, पर स्वाधीनचेता प्रतापमिश्र तीन-चार महीने से अधिक सम्पादकता की पराधीनता को न झेल सके और कानपुर वापस चले आए; अतएव हमारा उत्साह भी भङ्ग होगया और दूसरा उपन्यास (इसका उपसंहारभाग) अर्थात् लवङ्गलता उपन्यास) बस्तों ही में आज तक बंधा पड़ा रहा। अस्तु,—आज हम "हृदयहारिणी" उपन्यास को अपनी "उपन्यासमासिकपुस्तक" द्वारा प्रकाशित कर उपन्यास-प्रेमियों के आगे धरते हैं और इस बात की प्रतिज्ञा करते हैं कि इस उपन्यास के समाप्त होने पर इस (उपन्यास) के उपसंहारभाग (लवङ्गलता उपन्यास) को भी उक्त "उपन्यासमासिकपुस्तक" द्वारा प्रकाशित करेंगे।

काशी,

निवेदक—
श्रीकिशोरीलालगोस्वामी

१–३–१९०४